अर्जुन का महाभारत के युद्ध के समय, युद्ध ना करने का निर्णय अर्जुन का अहंकार था. ज्यादातर लोग उसके इस निर्णय का कारण मोह मानते है, परन्तु भगवान् कृष्ण इसे उसका अहंकार मानते है. जिस युद्ध का निर्णय लिया जा चूका है, उस युद्ध को अब अपने मोह के कारण रोकने का अर्थ भगवान् उसका अहंकार मानते है. महाभारत के युद्ध का निर्णय ना तो पांडवो का था और नाही कौरवों का, यह निर्णय स्वयं श्री कृष्ण भगवान् का था. युद्ध से पहले कृष्ण ने हर चेष्टा की, ताकि इस महायुद्ध को रोका जा सके, पर कोई भी चेष्टा सफल नहीं हुई. युद्ध के अंत में गांधारी ने भगवान् कृष्ण को श्राप देते हुए कहा था कि यदि तुम चाहते तो यह युद्ध ना होता. यह बात एक दम सच है. वो पांडवो और कौरवों के बीच खेले गए जुए को रोक सकते थे , वो द्रोपदी के साथ होने वाले अत्याचार को रोक सकते थे ,बहुत सी बाते जो इस युद्ध का कारण बनी उन सबको अगर कृष्ण भगवान् रोकना चाहते तो रोक सकते थे. भगवान् ने क्यों नहीं रोका? इसका जवाब भी कृष्ण भगवान् ने गीता में दिया है कृष्ण ने कहा कि मैं प्रयोजक हूँ , कर्ता नहीं ,कर्ता मनुष्य है . मैंने रचना की है जहाँ पाप भी है और पुण्य भी , और साथ में बुद्धि भी दी है सोचने के लिए, मेरा काम सिर्फ इतना था कि उनकी बुद्धि को जागृत करूँ, जो मैंने किया पर मैं इसका भागिदार नहीं हूँ. सब ने मेरे दिशा दिखने पर भी अपनी अपनी बुद्धि से अपने कर्मो का चुनाव किया है. जिन्होंने जानते हुए भी कि वो अधर्म के साथ है फिर भी अधर्म को ही अपना धर्म माना है तो यह मेरा दोष नहीं. और जब धर्म और अधर्म का सामना होगा तो युद्ध अवश्य होगा, जिसका निर्णय लिया जा चूका है. युद्ध को अब रोकना अर्जुन का स्वार्थ होगा, और उसकी यह बात अहंकार पूर्वक है. (आलिम)