शब्द बड़े चंचल,बड़े विचित्र,बड़े बेशर्म और होशियार;
शब्दों को एक जगह बैठाओ,बैठने को नहीं तैयार;
उन्हें बोला मिलकर बनाओ वाक्य श्रृंखला साकार;
सोशल डिस्टेंसिंग का बहाना कर मिलने को नहीं तैयार।
चुन चुन कर पास लाया उन्हें, लेकिन दूर हो जाते बारंबार;
कैसे बांधूं उन्हें एक बंधन में, कि कविता ले एक आकार;
शब्द बड़े चंचल,बड़े विचित्र,बड़े बेशर्म और होशियार;
बांधा उन्हें एक पंक्ति में, रचने को एक काव्य संसार।
सोचा रात्रि में समझाऊं उन्हें,ताकि हो काव्य का आगाज़;
एक पंक्ति में पिरों के रखा शर्तों पे उन्हें,निकले धोखेबाज;
बिखर गए फिर से देखो वो,कितने है बेशर्म दगाबाज।
जैसे तैसे साथ ला कर उन्हें,रचा फिर से एक काव्य संसार;
ना रस,ना अलंकार और ना ही छंद,मिला काव्य निराकार;
शब्द बड़े बेशर्म,बड़े चंचल,कैसे रचूं विशुद्ध काव्य संसार।
बड़ी मुश्किलों से जागृत की,शब्दों की वही एकाग्रचित्तता;
किया आयोजित शब्दों का मेला,दिखाई सही परिपक्वता;
आए क्रम से शब्द फिर ,दिखी काव्य के प्रति प्रतिबद्धता;
आखिर रचा गया एक काव्य,क्योंकि अब थी उनमें एकजुटता।
शब्द बड़े चंचल,बड़े विचित्र,बड़े बेशर्म और होशियार।
अब हमेशा ही रहते , बुनने के लिए कविता बारम्बार।