!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! *सृष्टि के आदिकाल में जब धरती पर जीव का प्रादुर्भाव हुआ तब से ही इस धराधाम पर सनातन
धर्म स्थापित हुआ है | सनातन का अर्थ है शाश्वत , अर्थात जिसका कोई आदि या अन्त न हो | सनातन
धर्म की दिव्यता का आंकलन इसी बात से लगाया जा सकता है कि वरितमान में संसार भर में जितने धर्म / पंथ या सम्प्रदाय हैं सब सनातन की मान्यताओं को स्वयं में समाहित करके ही अलग हुए हैं | इस समय हमारे
देश भारत में मूलरूप से चार धर्म मान्य हैं ! जिन्हें हिन्दू , मुस्लिम , सिक्ख एवं ईसाई के नाम से जाना जाता है | हिन्दू धर्म सनातन का पूर्णरूप है तो मुस्लिम धर्म के संस्थापक मोहम्मद साहब के पूर्वज भी सनातन के ही अनुयायी रहे हैं , इसका प्रमाण भी मिलता है | सिक्ख धर्म सनातन धर्म का दूसरा रूप है तो ईसाई धर्म भी यहीं से प्रकट हुआ है ! कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि सनातन धर्म यदि विशाल वृक्ष है तो अन्य धर्म उसकी शाखायें हैं | लोग सनातन से अलग होते गये और नये धर्म संसार में प्रकट होते रहे | जिस प्रकार एक पिता के चार पुत्रों की मान्यतायें उनके विचार एवं सोंच पृथक होती है | उनकी जीवनशैली एवं उनके मार्ग भी अलग होते हैं परंतु यदि पिता के नाम की आवश्यकता पड़ती है तो एक ही पिता का नाम की आवश्यकता पड़ती है तो उन्हें पिता के पास ही जाना पड़ता है , उसी प्रकार सनातन से प्रकट अनेक धर्म की मान्यतायें भले ही अलग - अलग हों परंतु यथा समय इन सबको सनातन में ही समाहित हो जाना है |* *आज संसार में कितने धर्म हो गये हैं इतनी गिनती भी कर पाना शायद सम्भव न हो | हिंदू धर्म को सनातन धर्म का पर्यायवाची कहा जाता है | आज का परिदृश्य यह है कि सनातन धर्म में ही अनेकों पंथ एवं संप्रदाय हो गए हैं , जो कि हिंदू धर्म के देवी-देवताओं एवं धर्मग्रंथों का विरोध करते हुए देखे जा सकते हैं | आज की स्थिति देख कर के अनेक सनातन मतावलम्बी चिंतातुर दिखाई पड़ते हैं | उनको लगता है कि सनातन धर्म का पतन हो रहा है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" ऐसे लोगों से यही कहना चाहूंगा की सनातन धर्म का पतन होना असंभव है | क्योंकि सनातन का अर्थ ही शाश्वत है जिसका कभी ना आदि होता है ना अंत | सनातन सत्य है और सत्य ना कभी पतित हो सकता है और ना ही कभी पराजित , तो ऐसे लोगों को सनातन धर्म की चिंता करने की आवश्यकता नहीं | भले ही आज अनेक मत पंथ एवं संप्रदाय हो गए हैं और वह भले ही सनातन धर्म की मान्यताओं का विरोध कर रहे हैं परंतु यह भी सत्य है ऐसे विरोधियों के पंथ संप्रदाय की मान्यताओं में सनातन धर्म कहीं ना कहीं परिलक्षित हो ही जाता है | वे इससे स्वयं को नहीं बचा सकते हैं | सृष्टि के आदिकाल से सनातन धर्म इस धराधाम पर था और प्रलय काल तक रहेगा इसमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए |* *सनातन धर्म था , सनातन धर्म है और सनातन धर्म रहेगा , अत: इसको मानने वाले स्वयं का संरक्षण करते रहें सनातन का संरक्षण स्वयं होता रहेगा |