*इस सृष्टि का सृजन परमात्मा ने पंच तत्वों को मिलाकर के किया है , यह पांच तत्व मिलकर प्रकृति का निर्माण करते हैं | प्रकृति एवं पुरुष मे ही सारी सृष्टि व्याप्त है , पुरुष के बिना प्रकृति संभव नहीं है और प्रकृति के बिना पुरुष का कोई अस्तित्व भी नहीं है | इस प्रकार नर नारी के सहयोग से सृष्टि पुष्पित पल्लवित हुई , परंतु इस सृष्टि के मूल को यदि देखा जाए तो इस सृष्टि के मूल में नारी ही दिखाई पड़ती है | इस सृष्टि की धुरी नारी ही है | हमारे ऋषि - महर्षिों ने प्रत्येक मनुष्य को आध्यात्मिकता का पाठ पढ़ाते हुए जीवन में आध्यात्मिक बनने के लिए प्रेरित करने का सतत प्रयास किया है | अध्यात्म का प्रथम पायदान होता है समर्पण | समर्पण की शिक्षा प्राप्त करनी हो तो वह एक नारी के जीवन से ही प्राप्त हो सकती है क्योंकि नारी समर्पण का पर्याय है | किसी भी संस्कृति को परिवर्तित कर देने में सक्षम नारी जैसा चाहे वैसा समाज निर्मित कर सकती है | नारी को परमात्मा ने अतुलनीय शक्ति दी है | अपने क्रियाकलापों से देश का नाम विश्व में गौरवान्वित करने का कार्य हमारे देश की नारियों ने किया है | अपने ज्ञान - विज्ञान , कला एवं वीरता से समस्त विश्व को अचंभित कर देने वाली भारतीय नारी समस्त विश्व में पूज्यनीय मानी जाती थी | अपने सौभाग्यवती होने के प्रतीक सोलह सिंगार से परिपूर्ण नारी का गौरव सम्माननीय एवं माता के रूप में पूजनीय हो जाता है | सृष्टि के आदिकाल से लेकर आज तक नारियों ने बहुत बलिदान दिए हैं | परंतु नारियों को पीडित करने का दोष पुरुष प्रधान समाज पर लगता रहा है , यह कहीं से कुछ प्रतिशत सत्यम ही है परंतु इससे भी नहीं नकारा जा सकता है कि नारियों के कारण ही नारियों की दुर्गति होती रही है | इतिहास साक्षी है सीता जी को देख कर के शूर्पणखा उनको मार डालने को उद्यत हो गई थी | ऐसे अनेकों उपाख्यान इतिहास के पन्नों में वर्णित है जहां नारी के कारण नारी ने अपना जीवन समाप्त कर दिया है | पुरुष प्रधान समाज को नारी का दुश्मन कहने वाले नारियों के क्रियाकलाप पर यदि दृष्टिपात करें | एक नारी परिवार एवं समाज को किस प्रकार संस्कारित कर सकती है इसका अनुपम उदाहरण हमारे देश में देखने को मिलता रहा है , परंतु आज जिस प्रकार सब कुछ परिवर्तित हुआ है उसी प्रकार नारियों की दिशा एवं दशा भी परिवर्तित हो गई है |*
*आज आधुनिकता की चपेट में जहां पूरा समाज है वहां नारिया भी इससे अछूती नहीं रह गयी हैं | आज अधिकतर नारियों ने अपना प्रमुख आभूषण लज्जा का त्याग कर दिया है | स्वतंत्रता के नाम पर अंग प्रदर्शन करने वाले वस्त्र पहनकर आज नारियां जिस प्रकार समाज में टहल रही है उससे उनका सम्मान नहीं बढ़ने वाला है | जब बेटे का विवाह करके एक बहू घर में लाई जाती है तो उस घर में सास बहू के बीच में प्रभुत्व का विवाद पनपने लगता है | प्रत्येक घर की बात तो नहीं की जा सकती है परंतु अधिकतर घरों में यह विवाद इतने चरम तक पहुंच जाता है कि परिवार का पुरुष वर्ग एक किनारे रह जाता है और सारे निर्णय नारियां स्वयं कर लेती हैं | बहू ने यदि कन्या को जन्म दे दिया है तो सबसे पहले सास की भौंह टेंढ़ी होती है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" देख रहा हूं कि आज समाज में कन्या के जन्म पर सबसे पहले यदि किसी को कष्ट होता है तो वह नारी ही है | यदि दुर्भाग्यवश बहू ने तीन कन्याओं को जन्म दे दिया तो उसका घर में रहना मुश्किल हो जाता है | पुरुष समाज तो शायद उसको कुछ नहीं कहता है परंतु नारियों के ही ताने उस बहू को घुट घुट कर जीने को विवश कर देते हैं | इसके अतिरिक्त आज आधुनिकता के नाम पर जिस प्रकार अपने वैवाहिक श्रृंगारों का त्याग नारी ने किया है वह भी समाज को गलत दिशा में ले जा रहा है | सौभाग्यवती हो करके विधवा की तरह श्रृंगारविहीन होकर समाज में क्रियाकलाप कर रही नारियाँ अपनी संतानों को कौन से संस्कार दे पायेंगी | हो सकता है कि मेरी बात कई महान नारियों को चुभ भी जाएं परंतु यही यथार्थ सत्य एवं यह विचारणीय विषय है | संतान की प्रथम गुरु माता ही होती है , अर्थात नारी जैसा चाहे वैसा संस्कार अपने बच्चों में आरोपित कर सकती है परंतु दुर्भाग्य का विषय यह है कि आज आधुनिकता की चपेट में नारियां स्वयं संस्कार विहीन होती जा रही है | जिसके पास स्वयं संस्कार नहीं बचा है वह अपनी संतानों को कौन सा संस्कार दे पाएगी ??*
*एक कहावत कही जाती है कि जब किसी भवन की नींव टेढ़ी हो जाती है तो दीवालें सीधी नहीं हो पाती | आज हमारे देश की नींव कहे जाने वाली नारी अपने संस्कारों का त्याग कर रही है तो समाज भला संस्कारवान कैसे हो सकता है |*