मकर
संक्रान्ति – सूर्य की उत्तरायण यात्रा का पर्व
“ॐ
भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् |”
यजु. ३६/३
हम
सब उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुख स्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप
परमात्मा को अपनी अन्तरात्मा में धारण करें, और वह ब्रह्म हमारी बुद्धि को
सन्मार्ग में प्रेरित करे |
मित्रों, आज मौज
मस्ती का पर्व लोहड़ी है और कल परिवर्तन का प्रकाश पर्व मकर संक्रान्ति | आज बैठे
बैठे पिछले बरस की बात स्मरण हो आई | दोपहर में धूप सेकने के लिये पार्क में जाकर बैठे
तो वहाँ बैठी महिलाओं ने मूँगफली और रेवड़ी खाने को दीं “हैप्पी लोहड़ी” की
शुभकामनाओं के साथ | उन्हीं के साथ चर्चा चल निकली कि कहाँ कहाँ किस किस रूप में मकर
संक्रान्ति का पर्व मनाया जाता है | “आपके यहाँ तो कल खिचड़ी बनेगी न उरद की दाल की
?” हमसे एक महिला प्रश्न किया “हम लोग भी ट्रांसफर पर रहे यू पी में तभी देखा कि
वहाँ खिचड़ी मनस कर (पूजा करके) दी जाती है और बनाकर खाई खिलाई भी जाती है मकर
संक्रान्ति को |” एक महिला अपने नौकर के साथ गज़क और मिठाई के डिब्बे उठाए चली आ
रही थीं | उनकी बेटी की शादी के बाद पहली लोहड़ी थी | हमें पार्क में बैठी देखा तो
चली आईं “अरे डॉ. पूर्णिमा, मैं तो अभी आपको इंटरकॉम करने वाली थी घर पहुँच कर,
अच्छा हुआ आप यहीं मिल गईं |”
“क्या
हुआ, सब खैरियत तो है ?” हमने हँसकर पूछा तो उन्होंने सूचना देने के साथ साथ
निमन्त्रण भी दे दिया “मीता की शादी की पहली लोहड़ी है न, तो अभी शाम को उसके
ससुराल वाले आने वाले हैं और हम लोग अपने फ़्लैट के नीचे ही लोहड़ी जलाएँगे, आप
आइयेगा ज़रूर... डिनर भी हमारे साथ ही करना है...”
दूसरी
ओर देखा तो बच्चे अलग खेलने में लगे हुए थे मक्की की खीलें मूँगफली और रेवड़ियों को
लिफ़ाफ़ों में भरे और कुछ अपनी ज़ेबों में ठूँसे, सो वे भी पास आ गए “हैप्पी लोहड़ी
आंटी, लीजिये फुलिया लीजिये...” पार्क के दूसरे छोर पर देखा तो रात के लोहड़ी के
उत्सव के लिये टेंट लगाया जा रहा था और लोहड़ी जलाने के लिये लकड़ियाँ रखी जा रही
थीं | कुछ लड़के पतंगें लेकर आये हुए थे “कल संक्रान्ति पर उड़ाएँगे आंटी जी...” त्योहारों
के इस अवसर पर अपने आस पास वाले इन सब लोगों का उत्साह देख हमारा भी उत्साहवर्धन होता
है कि कुछ लिखा जाए...
हम
सभी जानते हैं कि हिन्दू मान्यता में मकर संक्रान्ति का विशेष महत्व है | पौष मास
में मकर
संक्रान्ति के दिन से सूर्य की उत्तरायण गति प्रारम्भ होती है इसलिये इसको
उत्तरायणी भी कहते हैं | जब सूर्य किसी एक राशि को पार करके दूसरी
राशि में प्रवेश करता है, तो उसे संक्रान्ति कहते हैं । यह संक्रान्ति काल प्रति माह
होता है । भगवान भास्कर वर्ष के 12 महीनों में वह 12 राशियों में चक्कर लगा लेटे हैं | इस प्रकार संक्रान्ति
तो हर महीने होती है,
किन्तु पौष माह की संक्रान्ति
अर्थात् मकर संक्रान्ति का कुछ विशेष कारणों से अत्यन्त महत्व माना गया है |
वेदों में पौष माह को “सहस्य”
भी कहा गया है, जिसका अर्थ होता है वर्ष ऋतु, अर्थात् शीतकालीन वर्षा ऋतु |
पुनर्वसु और पुष्य नक्षत्रों का उदय इस समय होता है | पुनर्वसु का अर्थ है एक बार
समाप्त होने पर पुनः उत्पन्न होना, पुनः नवजीवन का आरम्भ करना | और पुष्य अर्थात्
पुष्टिकारक | पौष के अन्य अर्थ हैं शक्ति, प्रकाश, विजय | इसी से अनुमान लगाया जा
सकता है कि इस संक्रान्ति का इतना अधिक महत्व किसलिये है | यह संक्रान्ति हमें
नवजीवन का संकेत और वरदान देती है | सूर्य का मकर रेखा से उत्तरी कर्क रेखा की ओर
जाना उत्तरायण और कर्क रेखा से दक्षिण मकर रेखा की ओर जाना दक्षिणायन कहलाता है ।
जब सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण होने लगता है तब दिन बड़े और रात छोटी होने लगती है
। दिन बड़ा होने से प्रकाश अधिक होगा तथा रात्रि छोटी होने से अंधकार कम होगा | अतः
मकर संक्रान्ति पर सूर्य की राशि में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर
अग्रसर होना माना जाता है | प्रकाश अधिक होने से प्राणियों की चेतनता एवं कार्य
शक्ति में वृद्धि होगी | यों महत्व तो हर संक्रान्ति का होता है
और न केवल मकर राशि का गोचर अपितु हर राशि में सूर्य का गोचर जन साधारण के जीवन
में महत्व रखता है | क्योंकि भगवान सूर्यदेव के विभिन्न राशियों में संक्रमण के
कारण प्रकृति में कुछ न कुछ परिवर्तन अवश्य ही होते हैं | प्रकृति तो वैसे ही
परिवर्तनशील है, किन्तु, क्योंकि प्रति माह के ये परिवर्तन बहुत सूक्ष्म स्तर पर
होते हैं इसलिये इनकी ओर ध्यान नहीं जाता | किन्तु कर्क और मकर की संक्रान्तियाँ सबसे
अधिक महत्व की मानी जाती हैं | क्योंकि दोनों ही समय मौसमों में बहुत अधिक परिवर्तन
होता है, प्रकृति में परिवर्तन होता है, और इस सबका प्रभाव मनुष्य के जीवन पर पड़ता
है |
यहाँ
हम बात कर रहे हैं सूर्य के मकर राशि में संक्रमण की | सूर्यदेव का समस्त
प्राणियों पर, वनस्पतियों पर अर्थात समस्त प्रकृति पर – जड़ चेतन पर - कितना प्रभाव
है - इसका वर्णन गायत्री मन्त्र में देखा जा सकता है | इस मन्त्र में भू: शब्द का
प्रयोग पदार्थ और ऊर्जा के अर्थ में हुआ है – जो सूर्य का गुण है, भुवः शब्द का
प्रयोग अन्तरिक्ष के अर्थ में, तथा स्वः शब्द आत्मा के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है |
शुद्ध स्वरूप चेतन ब्रह्म भर्ग कहलाता है | इस प्रकार इस मन्त्र का अर्थ होता है –
पदार्थ और ऊर्जा (भू:), अन्तरिक्ष (भुवः), और आत्मा (स्वः) में विचरण करने वाला
सर्वशक्तिमान ईश्वर (ॐ) है | उस प्रेरक (सवितु:), पूज्यतम (वरेण्यं), शुद्ध स्वरूप
(भर्ग:) देव का (देवस्य) हमारा मन अथवा बुद्धि धारण करे (धीमहि) | वह परमात्मतत्व
(यः) हमारी (नः) बुद्धि (धियः) को अच्छे कार्यों में प्रवृत्त करे (प्रचोदयात्) |
सूर्य
समस्त चराचर जगत का प्राण है यह हम सभी जानते हैं | पृथिवी का सारा कार्य सूर्य से
प्राप्त ऊर्जा से ही चलता है और सूर्य की किरणों से प्राप्त आकर्षण से ही जीवमात्र
पृथिवी पर विद्यमान रह पाता है | गायत्री मन्त्र का मूल सम्बन्ध सविता अर्थात
सूर्य से है | गायत्री छन्द होने के कारण इस मन्त्र का नाम गायत्री हुआ | इसका
छन्द गायत्री है, ऋषि विश्वामित्र हैं और देवता सविता हैं | इस मन्त्र में सूर्य
को जगत की आत्मा कहा गया है, जिसके कारण प्राणों का प्रादुर्भाव होता है, पाँचों
तत्व और समस्त इन्द्रियाँ सक्रिय हो जाती हैं और लोक में अन्धकार का विनाश हो
प्रकाश का उदय होता है | जीवन की चहल पहल आरम्भ हो जाती है | नई नई वनस्पतियाँ
अँकुरित होती हैं | एक ओर जहाँ सूर्य से ऊर्जा प्राप्त होती है वहीं दूसरी ओर उसकी
सूक्ष्म शक्ति प्राणियों को उत्पन्न करने तथा उनका पोषण करने के लिये जीवनी शक्ति का
कार्य करती है | सूर्य ही ऐसा महाप्राण है जो जड़ जगत में परमाणु और चेतन जगत में
चेतना बनकर प्रवाहित होता है और उसके माध्यम से प्रस्फुटित होने वाला महाप्राण
ईश्वर का वह अंश है जो इस समस्त सृष्टि का संचालन करता है | इसका सूक्ष्म प्रभाव
शरीर के साथ साथ मन और बुद्धि को भी प्रभावित करता है | यही कारण है कि गायत्री
मन्त्र द्वारा बुद्धि को सन्मार्ग की ओर प्रेरित करने की प्रार्थना सूर्य से की
जाती है | अर्थात् सूर्य की उपासना से हम अपने भीतर के कलुष को दूर कर दिव्य आलोक
का प्रस्तार कर सकते हैं | इस प्रकार सूर्य की उपासना से अन्धकार रूपी विकार
तिरोहित हो जाता है और स्थूल शरीर को ओज, सूक्ष्म शरीर को तेज तथा कारण शरीर को
वर्चस्व प्राप्त होता है | सूर्य के इसी प्रभाव से प्रभावित होकर सूर्य की उपासना
ऋषि मुनियों ने आरम्भ की और आज विविध अवसरों पर विविध रूपों में सूर्योपासना की
जाती है |
मकर
राशि में सूर्य के संक्रमण के साथ दिन लम्बे होने आरम्भ हो जाते हैं और ठण्ड धीरे
धीरे विदा होने लगती है क्योंकि इसके साथ ही सूर्यदेव छः माह के लिये उत्तरायण की
यात्रा के लिये प्रस्थान कर जाते हैं | लोहड़ी और मकर संक्रान्ति पर तिलों की अग्नि
में आहुति देने को लोकभाषा में कहा भी जाता है “तिल चटखा जाड़ा सटका |” कहा जाता है
कि छः माह के शयन के बाद इन छः माह के लिये देवता जाग जाते हैं | अर्थात् इस दिन
से देवताओं के दिवस का आरम्भ होता है जो शरीरी जीवों के छः माह के बराबर होता है |
इसे इस प्रकार भी कहा जा सकता है कि सूर्यदेव धीरे धीरे तमस का निवारण करके प्रकाश
का प्रस्तार करना आरम्भ कर देते हैं और इस प्रकार यह मकर संक्रान्ति का पर्व अज्ञान
के अन्धकार को दूर करके ज्ञान के प्रकाश के प्रस्तार का भी प्रतिनिधित्व करता है |
इस वर्ष भी कल पौष शुक्ल प्रतिपदा को प्रातः सवा आठ बजे के लगभग सूर्यदेव मकर राशि
में प्रविष्ट हो जाएँगे और अगले छः माह तक बाद की राशियों में भ्रमण करते हुए जुलाई
के मध्य में कर्क में प्रविष्ट हो जाएँगे | कल प्रातः सवा आठ बजे से ही पुण्य काल
है जो सायं सूर्यास्त यानी पौने छह बजे तक रहेगा | संक्रमण काल में बव करण और वज्र
योग रहेगा | सूर्यदेव उत्तराषाढ़ नक्षत्र और चन्द्र श्रवण नक्षत्र पर भ्रमण कर रहे
होंगे | साथ ही मकर राशि में पञ्चग्रही योग बन रहा है – अर्थात सूर्य,
चन्द्र, शनि, गुरु और बुध के गोचर मकर में ही होंगे, जो एक बहुत अच्छा योग बना
रहे हैं | तो, सभी को आज लोहड़ी और कल मकर संक्रान्ति की हार्दिक शुभकामनाएँ...
इस
पर्व के पीछे बहुत सी कथाएँ भी प्रचलित हैं | जैसे महाभारत के अनुसार भीष्म पितामह
ने सूर्य के उत्तरायण प्रस्थान के समय को ही अपने परलोकगमन के लिये चुना था | क्योंकि
ऐसी मान्यता है कि उत्तरायण में जो लोग परलोकगामी होते हैं वे जन्म मृत्यु के
बन्धन से मुक्ति पाकर ब्रह्म में लीन हो जाते हैं | यह भी कथा है कि अपने पूर्वजों
को महर्षि कपिल के शाप से मुक्त कराने के लिये इसी दिन भागीरथ गंगा को पाताल में
ले गए थे और इसीलिये कुम्भ मेले के दौरान मकर संक्रान्ति का स्नान विशेष महत्व का
होता है | पुराणों में ऐसी भी कथा आती है कि इसी दिन सूर्यदेव अपने पुत्र शनि से
मिलने के लिए भी जाते हैं |
कथाएँ
जितनी भी हों, पर इतना तो सत्य है कि यह पर्व पूर्ण हर्षोल्लास के साथ किसी न किसी
रूप में प्रायः सारे भारतवर्ष के हिन्दू सम्प्रदाय में मनाया जाता है और हर स्थान
पर भगवान सूर्यदेव की पूजा अर्चना की जाती है | जैसे बंगाल में गंगा सागर मेला
लगता है | माना जाता है कि मकर संक्रान्ति पर गंगा के बंगाल की खाड़ी में निमग्न
होने से पहले गंगास्नान करना सौभाग्य वर्धक तथा पापनाशक होता है | असम में इस दिन
को भोगली बिहू के नाम से मनाया जाता है | उड़ीसा में मकर मेला लगता है | उत्तर भारत
में लोहड़ी और खिचड़ी के नाम से जाना जाता है | तमिलनाडु में पोंगल, महाराष्ट्र में
तिलगुल तथा अन्य सब स्थानों पर संक्रान्ति के नाम से इस पर्व को मनाते हैं |
गुजरात और राजस्थान में उत्तरायण के नाम से इस पर्व को मनाते हैं और पतंग उड़ाई
जाती हैं | आजकल तो वैसे समूचे उत्तर भारत में मकर संक्रान्ति को पतंग उड़ाने का
आयोजन किया जाता है |
तो
आइये हम सब भी अपनी अपनी कामनाओं की, महत्त्वाकांक्षाओं की पतंगे जितनी ऊँची उड़ा
सकते हैं उड़ाएँ और भगवान सूर्यदेव की अर्चना करते हुए प्रार्थना करें कि हम सबके
जीवन से अज्ञान का, मोह का, लोभ लालच का, ईर्ष्या द्वेष का अन्धकार तिरोहित होकर
ज्ञान, निष्काम कर्म भावना, सद्भाव और निश्छल तथा सात्विक प्रेम के प्रकाश से हम
सबका जीवन आलोकित हो जाए...