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महिला

8 मार्च 2019

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'महिला' सृष्टि का अनमोल ख़जाना महिला है बहुत महाना त्याग, बलिदान की सच्ची मूरत नारी की है सृष्टि पर बहुत सी सूरत सन्तान को जन्म है देती कोख में उसको रखकर कष्ट भी है वह सहती इसीलिए 'जननी' है दुनिया उसको कहती भाई को रक्षासूत्र बाँध भगिनी होने का फ़र्ज अदा कर लेती पैदा होती जब बेटी बनकर तो माँ-बाप को बेटी होने का सुख भी देती महिला अपने बलिदानों से सृष्टि को पावनता से है भर देती जब कष्ट में होती सन्तानें तो अपना सुख चेन है उस पर लूटा देती फिर भी सन्तानें आज के वक्त में क्यों है ? उसकी नहीं होती इस कारण ममता छुप-छुप के जननी होकर दुख सह रो लेती भाई-बहिन के रिश्ते में भाई के खातिर अपना सब कुछ है दे देती फिर भी भाई-बहिन के रिश्ते को धुँधला ना होने देती बेटी बन बेटे के दुराचारों में पराई कहलाकर भी माँ-बाप का साथ है देती महिला के महिला होने का त्याग, बलिदान भी सहने का दुनिया क्या खुब सबक है देती उसको अपने ही बलिदानों से दुनिया अबला क्यों है ? कह देती सृष्टि की सबसे सुन्दर रचना अपने त्याग और बलिदान से महिला, अबला, नारी है कहला लेती।

अनिल कुमार व.अ.हिन्दी की अन्य किताबें

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8 मार्च 2019
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'भव-सागर'

17 मार्च 2019
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भव सागर, यह संसार है जीवन, सागर मझधार हैघोर, गहन विपदा है घेरेजीवन में है, तेेरे और मेरे झंझावत ढेरों पारावार हैलहरों से उठती, हुँकार है आशा और निराशा इसमेंजीवन की दो पतवार है निराशा से होता कहाँ ?जन-जीवन का उद्धार हैआशा से ही लगती यहाँनौका तूफानों से पार हैभव-स

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आतंकवाद

27 मार्च 2019
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घबराहट है, डर का साया है आतंकवाद ने घमासान मचाया हैमजहब या कि जिहाद के नाम पर आतंकवाद ने मौत का खेल खिलाया हैआतंकी किस मजहब का ? यह तो मानवता का दुश्मनइसमें बस आतंक समाया है मासूमों की जान से खेलाआतंकी ने सब में डर को है घोलायह ना हिन्दु, ना यह मुस्लिम यह तो ब

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मैं का भाव

8 अप्रैल 2019
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अपनापन, भाईचारा'मैं' के भाव ने सब को माराइस में अपनेपन की छाँव नहीं'मैं' हूँ, 'हम' का भाव नहीं 'मैं' में स्वार्थ हरा-भरा लालच में लिपटा, अपने निमित्त 'मैं' से आपस का भाईचारा मराऊपर उठने की मनसा'हम' का मनोभाव नहीं 'मैं' के उद्धार करण मेंऔरों की बड़ती से मन झुलसा

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'अपरिभाषित ज़िन्दगी'

30 अप्रैल 2019
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क्या कहूँ, कि ज़िन्दगी क्या होती है कैसे यह कभी हँसती और कभी कैसे रो लेती है हर पल बहती यह अनिल प्रवाह सी होती है या कभी फूलों की गोद में लिपटीखुशियों के महक का गुलदस्ता देती हैऔर कभी यह दुख के काँटो का संसार भी हैहै बसन्त सा

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