यह कौन -सा विकास हो रहा है ...?
जहाँ ,गलत को सही ,
और ,सही को दबा देने का प्रयास हो रहा है !
वे कहते हैं ,साक्षरता बढ़ रही है ।
समाज की कुंठित सोच तो आज भी पनप रही है ।
औरत आज भी है ,मात्र हाड़ -माँस की कहानी ,
शरीर की भूख मिटा , जिसे रौंद कर मिटा देने में है आसानी!
हाँ ,यह लोकतंत्र है ...!
अंधा क़ानून सबूत माँगता है ।
अब ,कुछ दिन चर्चाओं में लाश को नोचेंगे गिद्ध ,
मुद्दा बना , आरोप -प्रत्यारोप भी होंगे ।
इसलिए ,आनन -फानन में नियम -कानून की धज्जियाँ उड़ा ,
संवेदनाओं की चिता जला दी गई।
शायद ….अब ,न्याय मिलेगा !
क्योंकि गूंगे और बहरे लोकतंत्र में, न्याय के लिए मरना जरूरी
है !
मगर ,बेटियों को सुरक्षित समाज दे पाना, आज भी इस के लिए गैर-ज़रूरी है ।
कुछ दिन रोष प्रकट कर , सब निर्लिप्तता से आगे
बढ़ जाएँगे ,
मगर सक्रिय रहेंगे ,दरिंदे !
एक औरत के हाथ से ,अपनी पेट की भूख मिटा ,
लपलपाती जीभ से तैयार , एक नए हाड़- माँस के शिकार
के लिए ....!
और ,फिर वही चक्र और मुर्दा शांति ...!
क्योंकि हम असमर्थ हैं , सुरक्षित समाज के निर्माण
के लिए !
परमजीत कौर