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टेंशन

2 अक्टूबर 2019

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लघुकथा ..................टेंशन


अवकाशप्राप्ति बड़ी इज्जत से हुई . सभी ने उनके पूरे कार्यकाल की बड़ी तारीफ़ की . उनकी ईमानदारी और कर्मठता को हरेक ने सराहा . उपहारों का सिलसिला तो अगले दिन तक भी चलता रहा . कुछ ने कहा , " ऐसे समर्पित अधिकारी बहुत कम होते हैं और यदि आपके अनुभव का लाभ , विभाग को आपकी सेवानिव्रती के बाद भी मिलता है तो विभाग के लिए अच्छी बात होगी ."

कमल बाबू को इनमें से कोई भी बात जँच नहीं रही थी क्योंकि वे जानते थे कि बड़े साहब ने अपनी सारी नौकरी में ऊपर की कमाई का कोई अवसर , हाथ से जाने नहीं दिया था और जब भी मामला ऊपरी कमाई का आया तो किसी भी नियम - कानून को आड़े नहीं आने दिया . खाते भी रहे और खिलाते भी रहे . इसलिए गर्दन कभी फंस भी गयी तो उसमे से आराम से निकल आये .

अधिकारी उनसे कभी रुष्ट नहीं हुए . उनमें एक खास बात यह भी थी कि इस बात के लिए कभी अड़े नहीं कि किससे कितना लेना है , कभी नहीं कहा कि भाई कम दे रहे हो या कुछ और दो . उनका हमेशा यही कहना था कि कुछ लेकर थोड़े ही जा रहा है . कुछ न कुछ दे कर ही जा रहा है न . उनके इस नजरिये से देने वाले भी उनसे खुश रहते थे .

सेवानिव्रती के बाद पेंशन तो तय थी पर ऊपर का धन्दा बन्द हो गया . पहले सुबह - सुबह फोन की घण्टियाँ बज उठती थी और कुछ लोग उपहारों समेत घर भी पहुंच जाते थे , पर अब वह सब भी ठंडा पड़ गया था . कुछ दिन तो निकल गए पर अब वे सारी बातें याद करके उनके दिमाग की नसें कसनी शुरू हो गयी थीं . हाथ हर समय नोट पकड़ने के लिए मचलते रहते थे और वे कहीं दिखाई नहीं देते थे . मन उचाट रहने लगा .

कमल बाबू सरल ह्रदय व्यक्ति थे . एक दिन उनके मन में आया चल कर बड़े साहब की खैर - खबर ले ली जाए . वे आफिस के बाद साहब के घर जा पहुंचे . साहब बनियान - लुंगी में कुर्सी पर बैठे थे . उनके हाथ में मुड़ा - तुड़ा अखबार था .

" आइए कमल बाबू .कैसे हैं आप . अच्छा हुआ जो आप आ गए वरना यहां आना तो किसी को गवारा ही नहीं है ."

" नहीं सर ! बहुत दिन से सोच रहा था कि आपकी खैर - खबर लूँ . आप सारा दिन बीत जाने के बाद भी अखबार देख रहे हैं , सर . यह काम तो सुबह - सुबह ही हो जाता है न . "

" क्या करें कमल बाबू . जिंदगी में और कोई शौक तो पाला नहीं . बस एक ही शौक था , आफिस - आफिस और बस आफिस . वह छूट गया तो अब वक्त तो काटना ही है . अखबार में ही दिन खपा लेते हैं ."

" सर ! कोई ख़ास खबर है क्या ? "

" अरे खास - वास क्या ! देश का बुरा हाल है . कोई काम करके राजी ही नहीं . अब के सरकारी बन्दे तो हरामखोरी को ही नौकरी मानने लगे हैं . सब तरफ बदइंतजामी है . म्युनिस्पेलिटी को ही ले लो . गन्दगी पर कोई पाबन्दी नहीं . न ही सफाई की सही व्यवस्था . मच्छरों के साथ कीटाणुओ का आतंक . बदले में बीमारियों की भरमार . लगता ही नहीं कि इस देश में सरकार भी है ."

" सही कहा सर ! आप तो सब जानते ही हैं . भला आपसे कुछ छिपा थोड़े ही है . "

" तभी तो दुःख होता है . भई हम तो रात - दिन पूरी लगन से अपने काम में जुटे रहते थे . उसी का नतीजा है कि पूरी इज्जत के साथ रिटायर हुए . अगर इस साल वक्त पर फागिंग हो जाती तो जितनी महामारियां फैली है , न फैलती और बहुतों की जान बच जाती . खैर और बताओ आफिस के क्या हाल हैं . नए साहब की वर्किंग तो ठीक ही होगी . "

" सर , ठीक क्या .बेचारे टेंशन में हैं ."

" उस सीट को सम्भालना सबके बूते की बात नहीं है , . हमने तो छोटे - बड़े सब को साध रखा था . तभी टिके रहे इतने साल !"

" सर ! जो मशीने पिछले साल खरीदी गयीं थी , इस्तमाल करने की बारी आयी तो वो सब की सब कबाड़ की मशीने निकली . उन्होंने काम ही नहीं किया ."

" हमने तो नए साहब को चार्ज में पैक्ड दी थीं , नई की नई ."

" सर सिर्फ पैकिंग तो दुरुस्त थी पर अंदर तो कबाड़ भरा था . "

" तो टेंशन की क्या जरूरत है . सब ठीक हो जायेगा . उन्हें मेरे पास भेज देना ,अच्छा बताओ , चाय तो लोगे न .!"

" नहीं सर ! आपका हाल - चाल लेने की इच्छा थी . सो ले लिया . अब चलूँगा सर ."

" शुक्रिया कमल बाबू . आते रहा करो ."


सुरेंद्र कुमार अरोड़ा

साहिबाबाद ।

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