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पुस्तक प्रकाशन

22 मई 2017

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पुस्तक प्रकाशन


पुस्तक प्रकाशन


हर रचनाकार, चाहे वह कहानी कार हो, नाटककार हो या समसामयिक विषयों पर लेख लिखने वाला हो, कवि हो या कुछ और, चाहेगा कि मेरी लिखी रचनाएं पुस्तक का रूप धारण करें. हाँ शुरुआती दौर में लगता है कि यह किसी के लिए थोड़े ही लिखी जा रही है, कि प्रकाशित कराऊं? पर बाद बाद में लगता है मेरी रचनाएं समाज दुनियाँ पढ़े और लोग मेरे रचनाकर्म को सराहें. व्यक्तिगत संवाद भले रोक लिए जाएं पर सामान्य रचनाएं बाहर की ओर झाँकती हैं. पहले डायरी में, फिर दोस्त-सहेलियों के बीच, फिर ब्लॉग और पत्र पत्रिकाओं की तरफ से होते – होते, अंततः पुस्तक रूप में आने का निर्णय देर सबेर हो ही जाता है. इसमें कुछ गलत भी नहीं है. अन्यथा कई बार तो पुस्तक प्रकाशन करें न करें की दुविधा में अच्छी रचनाएं डायरियों और कापियों में रहकर ही दम तोड़ देती हैं. उन्हें पाठकों तक पहुँचने का सौभाग्य ही नहीं मिलता.


और सब काम की तरह पुस्तक प्रकाशन के बारे में भी सोचना बहुत आसान है. बाह्य दृष्टि से बहुत सरल प्रतीत होता है. पर सही में प्रकाशित करने में कई तरह के पापड़ बेलने पड़ते हैं. हालाँकि सोच समझकर प्रकाशन का निर्णय लेने में भी बहुत समय लगता है, पर यह निर्णय लेना वास्तविक प्रकाशन करवाने से बहुत सरल साबित होता है. एक बार निर्णय हो जाए, तो काम शुरू किया जा सकता है.


सबसे पहला काम होता है - निर्णय लेना कि पुस्तक किस विधा एवं विषय पर होगी. अक्सर कविता , गीत, शायरी, कहानी, नाटक लिखने वाले, लिखना शुरु होने के बाद ही ऐसा निर्णय ले पाते हें. तब उन्हें निर्णय करने में तकलीफ नहीं होती कि पुस्तक किस विधा पर होगी. पर कुछ ऐसे वक्त आते हैं जहाँ लगता है कि अपना ज्ञान बाँटने के लिए पुस्तक लिखी जाए. किसी विषय पर पकड़ देखकर साथी उकसाते हैं कि आप इस पर पुस्तक क्यों नहीं लिख देते. वहाँ यह निर्णय करना दूभर हो जाता है कि किस विषय पर लिखी जाए. एक से अधिक विधा के रचनाकार दुविधा में रह जाते हैं कि पुस्तक केवल कविता की हो या कविता-कहानियों की या कुछ और.


मान लीजिए निर्णय किया कि कविता की किताब (लिखनी है) प्रकाशित करनी है. अब रचनाएं इकट्ठे करना का काम शुरु होता है. भाषा पर प्रमुख रूप से ध्यान देनी पडती है. पुनः-पुनः पढकर भाषा सँभालनी पड़ती है कि कोई गलत बात न बन जाए या कोई बनती बात न बिगड़ जाए. फिर आता है रचनाओं को क्रमबद्ध करना यह इसलिए भी जरूरी है कि पुस्तक में प्रवाह हो. पाठक को यथा संभव बाँध कर रखा जाए. क्रमबद्ध करने से मतलब है कि व्याकरण की पुस्तक में सर्वनाम पहले और फिर संज्ञा न हो. जीवनी में पहले जन्म हो, फिर उपनयन, फिर शादी और फिर परिवार – ऐसा क्रम.


अब सवाल उठता है कि प्रकाशन कहाँ से हो. खासतौर पर नए लेखकों के लिए प्रकाशक पाना और चुनना अपने आप में एक बहुत बड़ी समस्या है. आज कल सेल्फ पब्लिकेशन हाउस तो कुकुरमुत्तों की तरह उगे हुए हैं. कोई भी प्रकाशक अपनी पूरी जानकारी नहीं देता. परेशान करने के पचासों बहाने लिए बैठे होते हैं. खासकर रॉयल्टी के बारे में तो विश्वास ही नहीं करना चाहिए, उनकी बातों पर. अच्छा हो हर बात लिखित में ही की जाए.


कुछ प्रकाशकों को चुनकर, उनको आवेदन प्रस्तुत करना होता है कि मुझे आपसे कविता (विधा) की पुस्तक प्रकाशित करवानी है. तब प्रकाशक आपकी रचना के नमूने मँगवाता है और निर्णय लेता है कि वह आपकी पुस्तक प्रकाशित करने में इच्छुक है या नहीं. यदि आपकी रचनाएं सम्मति पाती हैं तो प्रकाशक आपको अपनी शर्तें बताता है. उसमें यह सब भी होता है कि प्रकाशन में वह क्या - क्या करेगा और रचनाकार को क्या - क्या करना होगा. किस तरह से कितनी रकम कब - कब जमा करनी होगी इत्यादि. अलग - अलग प्रकाशकों से उत्तर मिलने पर जो सबसे ज्यादा सहमत होने योग्य हो, उसे चुना जाता है. ध्यान रहे कि कुछ पुस्तकें प्रकाशक द्वारा लेखक को मुफ्त नमूने के तोर पर दी जाती हैं. जो संख्या में 20 से 30 तक होती हैं.


कवर पृष्ठ कैसा हो. उसे सोचना, खोजना, बनाना दूसरा प्रमुख काम हो जाता है. वैसे प्रकाशक कवर डिजाईन करते हैं. पर कुछ लोग अपनी पसंद का बनाना चाहते हैं. ऐसे लोग अपने कुछ चित्र प्रस्तुत करते हैं जिन्हें प्रकाशक कवर का रूप देकर पुस्तक का नाम और रचयिता का नाम अंकित करता है.


अब आता है प्रकाशक द्वारा दिए गए पुस्तक की प्रूफ रीडिंग करना. उसे बताना कि कहाँ किस तरह की गलती है और किस तरह सुधार करना है, गलतियाँ हों सुधार सुझाए. यह काम जरा पेंचीदा होता है. कई बार सुधार करवाने पड़ते हैं. यहाँ मैं चाहूँगा कि प्रूफ रीडिंग पर विस्तार में जानकारी के लिए पाठक मेरा लेख “एक पुस्तक की प्रूफ” रीडिंग पढ़ें. लिंक नीचे दिया हुआ है. कहाँ किस तरह, क्या सुधार करना है, इसके लिए एक तालिका बनाकर देना सर्वोत्तम होता है. तालिका में क्रमाँक, पृष्ठसंख्या, पेरा या कविता के छंद का क्रमाँक, लाइन व त्रुटिपूर्ण खंड देते हुए, बताना होता है कि सही क्या हो. इस तरह कम से कम तीन बार तो करना ही पड़ता है. बड़ी रचनाओं या विशेष विधाओं में यह ज्यादा बार भी हो सकता है.


वैयाकरणिक सुधारों के साथ इसमें alignment (दायाँ – बायाँ), गद्य में मार्जिन जस्टिफिकेशन, फाँट टाइप और साइज, रंग, पृष्ठ संख्या, रचना क्रमाँक कई तरह की बातों पर ध्यान देना पड़ता है. फॉर्मेटिंग का विशेष ध्यान देना लेखक के लिए बहुत ही हितकारी होता है.


कवर पृष्ठ तैयार होने पर इसे ISBN के लिए भेजना पड़ता है. इसमें पुस्तक को एक दस अंकों वाला या तेरह अंको वाला एक क्रमाँक दिया जाता है जिससे यह पुस्तक दुनियाँ भर में जानी जाती रहेगी. आई एस बी एन (ISBN) के लिए आवेदन के पूर्व प्रकाशक कुल रकम के 50 % की माँग करते हैं. सर्वोत्तम है कि राशि इंटरनेट से ही स्थानाँतरित की जाए. वैसे चेक द्वारा भी भुगतान हो सकता है. कैश जमा करने पर अब बैंक वाले बहुत ज्यादा कैश हेंडलिंग चार्ज लेने लगे हैं. इसलिए इससे परहेज करना ही उचित होगा.


अब आएँ पेपर वर्क और रॉयल्टी पर. पुस्तक प्रकाशन के लिए लेखक को प्रकाशक के साथ एक करार करना पड़ता है . जिसमें उनकी सेवाएँ, रचनाकार की जिम्मेदारी, व्यय, किश्तों की संख्या व समय (यदि आवश्यक हो तो) और उनकी अन्य शर्तें लिखी होती है. साथ में यह सब भी होता है कि पुस्तक पर यदि रॉयल्टी है तो किस तरह उसका आकलन होगा, किस तरह उसका भुगतान होगा. इन सबके लिए लेखक को अपनी कुछ व्यक्तिगत सूचनाएं भी देनी पड़ती हैं. अपना नाम, पता, जन्म तारीख, बैंक एकाउंट की सूचना अभिभावकों के नाम, पुस्तक प्रकाशन के लिए पावर ऑफ एटार्नी और प्रकाशक के विशिष्ट फार्म पर आवेदन. इनके साथ पेन कार्ड की कापी, दो पते के प्रूफ, आधार कार्ड, चालू बैंक खाते का (रद्द किया हुआ) चेक भी संलग्न करना पड़ता है. खास बात है कि कोई भी प्रपत्र (Document) मूल रूप में नहीं भेजना होता है. सब स्वयं प्रमाणित फोटोकापी मात्र.


प्रूफ रीडिंग पूरी होने पर प्रकाशक बकाया आधी राशि की माँग कर लेता है. उसके बाद ही पुस्तक का प्रकाशन करता है. इस दौरान कुछ बातें विस्तार में करनी होती हैं. प्रकाशक हमेशा अधूरी भाषा में बातें करता है. कुछ लिखित में देने से डरता है या कहें परहेज करता है. हाँ बड़े प्रकाशक हों तो यह सब झंझट नहीं रहते. उन्हें उनकी साख उन्हें पकड़ती है. जैसे पटल पर अंकित होगा कि 100 प्रतिशत रॉयल्टी पाएं. इससे एक नया लेखक समझता है कि पुस्तक के दाम 80 रुपए हों तो लेखक को प्रति पुस्तक रु.80 रॉयल्टी में मिलेंगे. पर वास्तव में ऐसा नहीं होता. पुस्तक की कीमत से लागत निकालकर उसकी प्रतिशत रॉयल्टी में दी जाती है. किंतु लागत की बात प्रकाशक कभी नहीं करता. लेखक के करने पर वह कन्नी काटता है. अंततः प्रकाशक लेखक को लागत के बारे अवगत कराने से बचता रहता है.


मेरी पहली पुस्तक दशा और दिशा के समय ऐसा ही हुआ. पेपरबैक पर 70 प्रतिशत व ई बुक पर 85 प्रतिशत रॉयल्टी बताई गई. बार बार लिखित में माँगने पर भी लागत के बारे में कुछ भी लिखित नहीं आया. प्रकाशक का जो कर्मचारी मुझसे संपर्क में था उसने मुझे बताया कि लागत रु.60 आ रही है तो एम. आर पी रु.120 रख सकते हैं. मैंने हिसाब किया (120-60) का 70 प्रतिशत रु.42.00. यानी रु42 प्रति पुस्तक रॉयल्टी. वैसे ही ई बुक की कीमत लगाई रु.49 जिसका 85 प्रतिशत रु.41.65 होता है. एक मोटे तौर पर विचार था कि प्रति पुस्तक करीब रु.42 मिलेंगे. इसी हिसाब से कीमत पर रजामंदी दी थी.


जब ऑनलाइन देखने के मिला तब देखा प्रति पुस्तक ईबुक के तो ठीक मिल रहे हैं किंतु पेपरबैक पर रु.22.85 दिया जा रहा है. प्रकाशक को बार बार लिखने पर भी रॉयल्टी के हिसाब नहीं मिले, न ही मिला लागत का लिखित रूप. फिर खबर आई कि लागत बढ़ गई है रु.90 हो गई इसलिए एम आर पी बढ़ानी होगी या रॉयल्टी घटानी होगी. मेरी इच्छानुसार मेल भेजा गया कि लागत बढ़ गई है इसलिए कीमत बढ़ाकर रु150 करने की अनुमति दीजिए. दिया, यह सोच कर कि अब 150 व 90 के बाच 60 रु का फर्क है तो रॉयल्टी रु.42 पर आ जाएगी. लेकिन नहीं रॉयल्टी वहीं रही रु.22.85 पर और कहा गया कि पहले ही पुस्तक की लागत करीब रु 90 थी तो रॉयल्टी रु.22.85 मिल रही थी. लागत रु30 बढ़ी तो कीमत भी रु30 बढ़ा दी. जिससे आपकी रॉयल्टी बनी रही वरना कुछ भी नहीं मिलता आपको. इस तरह प्रकाशक ने आधी रॉयल्टी का चूना लगाया. कुल मिलाकर 250 से ऊपर प्रतियाँ बिकने पर भी लागत नहीं लौटी.


सारा माखन प्रकाशक ले गया. मैंने उन्हें उपभोक्ता शिकायत मंच पर लाने की बात कही है. कभी तो होगा. सारे संप्रेषण सँभाल रखे हैं मैंने. ऐसा होता है पैसों के मामलों में प्रकाशकों का व्यवहार. इन सब से बचने के लिए प्रकाशक से लागत व कीमत पर रॉयल्टी की जानकारी करार में ही लिखित करवा लेना जरूरी होता है. हाँ इसमें प्रकाशक को बहुत तकलीफ होती है, पर धंधा करना हो, तो मानेगा. लेखक के लिए जरूरी है कि वह किसी भी तरह प्रकाशक को लिखित में देने के लिए बाध्य करे. ई बुक में ऐसी परेशानी नहीं रहती क्योंकि उसमें की अलग लागत नहीं लगती.


एक बात जो इन सबसे परे है, वह यह कि एक शर्त ऐसी होती है जिसके अनुसार जब पुस्तक प्रकाशक के पोर्टल से बिकती है उसमें तो 100% रॉयल्टी पर इनके चेनल पार्टनर पर बिके तो 70%.मतलब अलग अलग रॉयल्टी दी जाती है. पता करने से बताया जाता है कि चेनल पार्टनरों को कमीशन देना पड़ता है. यह सब खेल हैं. प्रकाशक को चाहिए कि चेनल पार्टनर से ऐसा करार करे कि प्रकाशक के पास कीमत पूरी आए. इसके लिए वहाँ पुस्तक ज्यादा में बिकेगी. इससे प्रकाशक को फायदा है कि ग्राहक प्रकाशक की तरफ झुकेंगे. पर प्रकाशक चेनल पार्टनरों की बिक्री में भी कमाते हैं, इसलिए वे ऐसा करना नहीं चाहते. जायज तरीका होगा कि एक कीमत तय की जाए पुस्तक की कि कितने में बिकनी है. उस पर जो कमीशन चेनल पार्टनर को दिया जाता है उसे जोड़ें . इस तरह सब चेनल पार्टनरों के हिसाब में जो सबसे ज्यादा आता है, उसे एम आर पी कहा जाए. एम आर पी पर चेनलों की कमीशन के हिसाब से उन्हें डिस्काऊंट दे दिया जाए, जिससे उतने में बिकने पर कीमत के पैसे प्रकाशक तक आएँगे. प्रकाशक के पोर्टल पर सबसे ज्यादा डिस्काऊंट होगा और पुस्तक कीमत पर ही बिकेगी.


पर इतनी ईमानदारी शायद प्रकाशकों को भाती नहीं है. यह सब बातें तय होने पर ही प्रकाशक को बकाया रकम की सुपुर्दगी देनी चाहिए. अब पुस्तक पूरी तरह प्रकाशन के लिए तैयार है. प्रकाशन पर लेखक अपने सभी जानकारों को नेट पर पुस्तक के उपलब्धि की सूचना दे सकता है. अच्छा होगा यदि प्रकाशक लेखक को लिंक दे, जिससे लेखक अपने जानकारों को लिंक देकर पेमेंट कैसे करना है, ईबुक कैसे डाउनलोड करना है, बता सकता है. अब समझ आया होगा हमारे साथी लेखकों को कि प्रकाशन कितनी दुविधाओं से घिरा है. पुस्तक छपकर आने से खुशी तो होती है पर जब तक छप नहीं जाती पारा सातवें आसमान पर ही होता है. ............................

माड़भूषि रंगराज अयंगर की अन्य किताबें

माड़भूषि रंगराज अयंगर

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रेणु जी , पटल में प्रत्युत्तर नहीं हो पा रहा है. इसलिए इस तरह जवाब प्रेषित कर रहा हूँ. आपने तो तारीफों के पुल ही बाँध दिए. कृपया मुझे चने के पेड़ या हिमालय पर मत चढ़ाइए. दोनों ही मेरी सेहत के लिए हानि कारक है. चढ़ना भले ही आप लोगों की सहायता से संभव हो, पर वहाँ से लुढ़कने का अपना असर है. साथ ही सफर में रहने दें, तो अच्छा रहेगा. आपकी इस भरी पूरी एवं भूरी भूरी प्रशंसा के लिए हृदयपूर्वक आभार. सादर, अयंगर.

24 मई 2017

माड़भूषि रंगराज अयंगर

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रेणु जी, आपने इस लेख को पसंद किया और सूचित भी किया. सादर धन्यवाद अयंगर.

24 मई 2017

रेणु

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आदरणीय अयंगर जी -- सादर प्रणाम | आपका एक और ज्ञानपयोगी लेख पढ़कर बहुत अच्छा लग रहा है -- आपने निहायत ईमान दारी से सरल शब्दों में अपनी बात लिखी है | पुस्तक के पीछे की कहानी कोई नहीं जानता | बस हम पुस्तक पढ़कर संतुष्ट हो जाते हैं | आपने प्रकाशक वर्ग की विद्रूपताओं को खुलासा किया उसे जानकार मायूसी हुई क्योकि पुस्तक के पीछे लेखक की अनथक और चिंतन होता है -- एक एक शब्द की बूंदों से वह साहित्य की गागर भरता है -- साहित्य समाज का दर्पण है तो लेखक साहित्य का रचियता -- उसका सम्मान जरूर होना चाहिए और उसे उसकी मेहनत का फल भी जरूर मिलना चाहिए -- आपके लेख के माध्यम से कई नयी बातें जानी -- असल में ये लेख एक संस्मरण है पुस्तक प्रकाशन के सन्दर्भ में | मुझे तो बहुत अच्छा लगा -- आशा है और लोग भी लाभ लेंगे -- आपको बहुत बधाई और हार्दिक शुभकामना -- इस सार्थक लेख के लिए ------ सादर ---

23 मई 2017

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एकान्तर कथा - राधे का बैंक खाता.

17 मई 2016
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कथा-राधे का बैंक खाता<!--[if !supportLineBreakNewLine]--><!--[endif]-->श्रीनिवासन शहर के एकप्रतिष्ठित रईस थे. उनके पास कई बंगले, कारखाने व और व्यापार थे.वे अपने इकलौते बेटे राधे कोसंसार की सारी सुविधाएँ मुहैया कराना चाहते थे. उनका मन था कि चाहे मजबूरी में याफिर शौक से ही सही, उनके बेटे को कभी कोई का

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कलुषित नव रत्न

27 मई 2016
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कलुषितनव रत्न भारतकभी सोने की चिड़िया, रत्नों की खान और ज्ञान का सागर कहा जाता था.लेकिनहमारी जनसंख्या ने खासकर इस पर बड़ा प्रहार किया. विदेशी जो लूट गए सो तो लूट हीगए किंतु जन,संख्या की मार ने हमारे बीच ही होड़ खड़ी कर दी. संसाधनों के आभाव मेंहम स्वार्थी होते गए. दाने - दाने को तरसता गरीब अपना ईमान

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मेरी प्रथम प्रकाशित पुस्तक - दशा और दिशा - प्रकाशक ऑनलाईन गाथा द एंडल लेस टेल्स पर बेस्ट सेलर ऑफ ईयर चुनी गई है.

27 जुलाई 2016
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एक कविता रमा चक्रवर्ती भाभी जी की .... माँ.

29 सितम्बर 2016
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एक कविता रमा चक्रवर्ती भाभीजी की.... माँ गर्भ मे पल रहे, शिशु के स्पंदन से पुलकित होती मैं माँ हूँ. प्रसव वेदना तड़पती,मृत्यु से जूझती,फिर भी संतान - आगमन का अभिनंदन करती मैं माँ हूँ. शिशु का प्रथम क्रंदन सुनअपनी पूर्णता पर इतराती,मैं माँ हूँ वक्ष के अमृत-धार से अपनी मातृ

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द्वंद ... जारी है. राजस्थान के चाँदा गाँव में स्नेहल एक घरेलू जाना पहचाना नाम था. गाँव के कान्वेंट स्कूल में पढ़ने वाली स्नेहल पढ़ाई में अव्वल थी. मजाल कि उसके रहते कोई कक्षा में प्रथम आने की सोच भी लेता. इसके साथ वह थी भी बला की खूबसूरत. घर- बाहर सब उसे प्यार करते थे,

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मर्यादा पुरुषोत्तम.

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मर्यादा पुरुषोत्तम. (पाठकों से अनुरोध है कि अपने विचार बेबेक रखें और चर्चाकरें. ताकि कुछ सीखा भी जा सके.) रावण ने सीता को हरकर, जो किया, किया. लेकिन तुम थे - सियाराम, सीता के राम, तुम सीता को प्राणों से प्यारे थे, सीता भी तुमको प्राणों स

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प्रणय पात्र

8 नवम्बर 2016
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रोहित का मोबाईल फिर बजा. अब तक न जाने कितनी बार बज चुका था. इतनी बार बजने पर उसे लगा कि कोई तो किसी गंभीर परेशानी में होगा अन्यथा इतने बार फोन न करता. अनमना सा हारकर रोहित ने इस बार फोन उठा ही लिया. संबोधन किया हलो..उधर से आवाज आई...भाई साहब नमस्कार, गोपाल बोल रहा हूँ. बह

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Laxmirangam: विधाता

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विधाता क्यों बदनामकरो तुम उसको,उसने पूरीदुनियां रच दी है.हम सबकोजीवनदान दियाहाड़ माँस सेभर - भर कर. हमने तो उनकोमढ़ ही दियाजैसा चाहा गढ़भी दिया,उसने तोशिकायत की ही नहींइस पर तोहिदायत दी ही नहीं। हमने तो उनको पत्थर में भीगढ़ कर रक्खा..उसने तो केवलरक्खा है पत्थरकुछ इंसानोंके सीने मेंदिल की जगह,इंसानों कोन

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एक रात की व्यथा कथा

7 फरवरी 2017
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एक रात की व्यथा - कथा बहुत मुश्किल से स्नेहा ने अपना तबादला हैदराबाद करवाया था चंडीगढ़ से. पति प्रीतम पहले से ही हैदराबाद में नियुक्त थे. प्रीतम खुश था कि अब स्नेहा और बेटी आशिया भी साथ रहने हैदराबाद आ रहे हैं. आशिया उनकी इकलौती व लाड़ली बेटी थी. इसलिए उसकी सुविधा का हर

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हार का उपहार

12 फरवरी 2017
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हार का उपहार बरसों परवानों को, दीपक कीलौ में जलते देखा है,शमा के चारों ओर पड़ेवे ढेर पतंगे देखा है. कालेज में गोरी छोरी कोघेरे छोरों को देखा है,खुद नारी नर की ओर खिंचे,ऐसा कब किसने देखा है. उसने क्या देखा, क्या जाने,किसकी उम्मीद जताती है,कहीं, ढ़ोल के भीतर पोल न हो,यह सोच न क्यों घबराती है. वह करती

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मन दर्पण

14 फरवरी 2017
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मेरी नई पुस्तक मन दर्पण का कवर पेज प्रस्तुत है. पुस्तक अप्रेल 2017 तक प्रकाशित हो जाएगी.

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सँभलिए

19 फरवरी 2017
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सँभलिए --------------- कभी कभी डर लगता है, वो प्यार न मुझसे कर बैठे, साथ मेरा ले भावुक होकर, घरवालों से ना लड़ बैठे। जो थोड़ा परिवार बचा है वह भी टूटा जाएगा, मैं हूँ अकेला, सदा अकेला, कोई मुझसे क्या कुछ पाएगा।। दोष न दे वो भले मुझे पर, खुद को माफ करूँ कैसे?

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एक पुस्तक की प्रूफ रीडिंग

7 मई 2017
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एक पुस्तक की प्रूफ रीडिंग सबसे पहली बात - “प्रूफ रीडर का काम पुस्तक में परिवर्तन करना नहीं है, केवल सुझाव देने हैं कि पुस्तक में क्या कमियां है और उनका निराकरण कैसे किया जाए. अच्छे प्रूफ रीडर पुस्तक उत्कृष्टता बढ़ाने के लिए भी सुझाव दे सकते

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मेरी दूसरी पुस्तक मन दर्पण का आवरण

9 मई 2017
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ISBN 978-81-933482-3-1 गूगल सर्च कर, ऑर्डर कर सकेंगे. अभी प्री-सेल शुरु है. पुस्तक 20 मई से 1 जून के बीच प्रकाशित होने की उम्मीद है.

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पुस्तक प्रकाशन

22 मई 2017
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पुस्तक प्रकाशन पुस्तक प्रकाशन हर रचनाकार, चाहे वह कहानी कार हो, नाटककार हो या समसामयिक विषयों पर लेख लिखने वाला हो, कवि हो या कुछ और, चाहेगा कि मेरी लिखी रचनाएं पुस्तक का रूप धारण करें. हाँ शुरुआती दौर में लगता है कि यह किसी के लिए

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निर्णय ( भाग - 1)

2 जून 2017
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निर्णय ( भाग -1)बी एड में अलग अलग कॉलेजो से आए हुए अलग अलग विधाओंके विद्यार्थी थे । सबकी शैक्षणिक योग्यताएँ भी समान नहीं थीं । रजत इतिहास में एमए था । उसे लेखन का शौक था और वह बहुत अच्छा वक्ता भी था । उसके लेख व कविताएँअक्सर पत्र - पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते थे । प्

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निर्णय ( भाग - 2)

2 जून 2017
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निर्णय ( भाग - 2 ) रजत भी समझ नहीं पा रहा था कि कैसे अपनी भावना संजनातक पहुँचाए। डर भी था कि संजना उसकी बात से नाराज हो गई तो वह उसे हमेशा के लिए हीखो देगा। वह अजब पशोपेश में पड़ा हुआ था।कॉलेज के वार्षिकोत्सव में रंजना ने कई कार्यक्रमोंमें भाग लिया था । एक नाटिका में

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मन दर्पण

2 जून 2017
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मेरी दूसरी पुस्तक मन दर्पण 25 मई 2017 को प्रकाशित हो चुकी है. पाठकगण गूगल पर - ISBN 978-81-933482-3-9खोज कर ई बुक या पेपरबैक आर्डर कर सकते हैं.ईबुक की कीमत रु.100 तथा पेपरबैक की कीमत रु.175 रखी गई है.पेपरबैक पर रु 60 प्रति पुस्तक का अतिरिक्त डाक खर्च लगेगा जो

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एक पौधा

5 जून 2017
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पर्यावनण दिवस 5 जून के अवसर पर...एक पौधा.मधुवन मनमोहक है,चितवन रमणीय है,उपवन अति सुंदर हैऔर जीवन से ही प्रदुर्भाव है इन सबका.फिर जब जीवन के उपवन से,मधुवन के चितवन तक,हर जगह‘वन ‘ ही की विशिष्टता है.तो क्यों न हम वन लगाएँ ?आईए शुरुआत करें,और लगाएँ....एक पौधा.......

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निर्णय

23 जून 2017
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बी एड में अलग अलग कॉलेजो से आए हुए अलग अलग विधाओं के विद्यार्थी थे । सबकी शैक्षणिक योग्यताएँ भी समान नहीं थीं । रजत इतिहास में एम ए था । उसे लेखन का शौक था और वह बहुत अच्छा वक्ता भी था । उसके लेख व कविताएँ अक्सर पत्र - पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते थे । प्रिया ने बी

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संप्रेषण और संवाद

26 अगस्त 2017
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संप्रेषण और संवाद संप्रेषण और संवाद आपके कानों में किसी की आवाज सुनाई देती है. शायद कोई प्रचार हो रहा है. पर भाषा आपकी जानी पहचानी नहीं है. इससे आप उसे समझ नहीं पाते. संवाद तो प्रसारित हुआ, यानी संप्रेषण हुआ, प्राप्त भी हुआ, पर संपूर्ण नहीं हुआ क्योंक

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Laxmirangam: ये कैसा दशहरा

3 अक्टूबर 2017
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ये कैसा दशहरा ये कैसा दशहराआज मेरे देश में ये क्या हो रहा है.दहशत भरी है हवा में,डर लग रहा है,जगह जगह यहाँ तो रक्तपात हो रहा है. कहीं इस देश मेंइस दशहरा में रावण की जगह,शायद, राम तो नहीं जल रहा है.पता नहीं कब से,हर दशहरे रावण जल रहा है

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डिजिटल इंडिया – मेरा अनुभव.

2 नवम्बर 2017
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डिजिटल इंडिया – मेरा अनुभव. उस दिन मेरे मोबाईल पर फ्लेश आया. यदि आप जिओ का सिम घर बैठे पाना चाहते हैं तो यहाँ क्लिक करें. मैंने क्लिक कर दिया. मुझे अपना नाम पता, आधार नंबर देने को कहा गया. मैंने दे दिया. फिर मुझसे पूछा गया कि आप जिओ सिम कब और कहाँ चाहते हैं. पता और समय

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टूटते बंधन

13 फरवरी 2018
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टूटते बंधनपाश्चात्य सभ्यता के अनुसरण की होड़ में जो सबसे महत्वपूर्ण बातेंसीखी गई या सीखी जा रही है उनमें जो सर्वप्रथम स्थान पर आता है वह है बंधन मुक्तहोना. जीवन के हर विधा में बंधनों को तोड़कर बाहर मुक्त गगन में आने की प्रथा चलपड़ी है. यहाँ यह विचार का या विमर्श का विषय नहीं है कि यह उचित है या अनुच

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शब्द नगरी से अलगाव

7 सितम्बर 2018
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व्यवस्थापकगण एवं पाठकगण शब्द नगरी ने अपने डेशबोर्ड पर जाने के लिए बहुत सारी अड़चनें पैदा कर दी हैं. हर बार शब्दनगरी खोलने पर मेल वेरिफाई करने को कहा जा रहा है और तो और यह भी संदेश मिल रहा है कि मेल नहीं मिलने की हालात में अ

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