*इस संसार में जन्म लेने के बाद एक मनुष्य को पूर्ण मनुष्य बनने के लिए उसके हृदय में दया , करुणा , आर्जव , मार्दव ,सरलता , शील , प्रतिभा , न्याय , ज्ञान , परोपकार , सहिष्णुता , प्रीति , रचनाधर्मिता , सहकार , प्रकृतिप्रेम , राष्ट्रप्रेम एवं अपने महापुरुषों आदि के प्रति अगाध श्रद्धा का होना परम आवश्यक है | यह सारे सद्गुण जिस मनुष्य में होते हैं वही पूर्ण मानव कहा जा सकता है | यही सारे सद्गुण मिलकर एक सुंदर समाज की रचना करते हैं | इनका आरोपण मनुष्य में किस प्रकार हो ? इस पर गहन चिंतन हमारे ऋषि महर्षियों ने सृष्टि के आदिकाल में ही कर लिया था | इन सारे उत्तम गुणों का आवाहन एक-एक व्यक्ति में करने के लिए ही सनातन धर्म में संस्कार की व्यवस्था बनाई गई थी क्योंकि हमारे सद्ग्रंथों में लिखा है :- "संस्कारोहि गुणान्तरा धानमुच्चते" अर्थात संस्कार का प्रभाव अलग होता है | मनुष्य के दुर्गुणों को निकालकर उसमें सद्गुण आरोपित करने की प्रक्रिया को ही संस्कार कहा जाता है | यदि देखा जाय तो मानव जीवन को परिष्कृत करने वाली आध्यात्मिक विद्या का नाम ही संस्कार है | संस्कारों से संपन्न होने वाला मानव सुसंस्कृत , चरित्रवान , सदाचारी और भक्तिपरायण हो सकता है अन्यथा कुसंस्कार से प्रेरित एवं पीड़ित होकर मनुष्य पतित हो जाता है | अभीष्ट लक्ष्य की प्राप्ति के लिए मनुष्य में संस्कार का होना परम आवश्यक है | हमारी भारतीय संस्कृति में संस्कारों को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है इसी क्रम में गर्भाधान से लेकर मृत्यु पर्यंत अनेकों सांस्कारिक प्रयोग बताए जाते रहे हैं | संस्कार विहीन मनुष्य पशु की भांति ही जीवन यापन करता रहता है और वह अपने लक्ष्य को निर्धारित नहीं कर पाता , जबकि संस्कारी व्यक्ति की क्रिया सत्य सनातन को खोजने की यात्रा बन जाती है इस सत्य को खोजने का प्रयास करने वाला ही समाज एवं मानवता के लिए सर्वस्व निछावर कर सकता है | समस्त विश्व में भारत देश एक आदर्श संस्कृति एवं संस्कार के लिए जाना जाता रहा है हमारे संस्कारों ने ही हम को विश्व गुरु का दर्जा दिया था | विश्व के समस्त देशों ने हमारे संस्कारों को ग्रहण करने का प्रयास किया है | संस्कारों से संस्कृत होकर सामान्य मनुष्य भी ऋषियों के समान पूज्य हो जाता है | जो सम्मान समाज एवं देश में एक संस्कारी व्यक्ति पा जाता है वह सम्मान किसी अन्य को प्राप्त होना दुर्लभ है | संस्कारों का ही महत्व था कि परिवार व्यवस्था हमारे भारत देश में आज तक चल रही है अन्यथा अन्य देशों में तो एकल परिवार प्रारंभ से ही देखे जा सकते हैं | संस्कार विहीन होकर मनुष्य ना तो अपना कल्याण कर सकता है ना ही समाज एवं देश का |*
*आज संस्कारी कहा जाने वाला हमारा देश भारत भी आधुनिकता की चपेट में दिख रहा है | संस्कारों की कमी आज हमारे देश में भी स्पष्ट दिखाई पड़ने लगी है | संस्कार की प्रथम पाठशाला परिवार को कहा गया है | सनातन धर्म में बताए जाने वाले सोलह संस्कार आज कहने भर को रह गए है | इन दिव्य संस्कारों की बात छोड़ दिया जाय आज तो सामान्य संस्कार भी देखने को नहीं मिल रहे है | परिवार में माता पिता एवं समाज में सद्गुरु , महापुरुषों का सम्मान आज की युवा पीढ़ी नहीं करना चाहती है | इसका एक ही कारण है कि उनमें संस्कारों का आरोपण नहीं किया गया है | मेरा "आचार्य अर्जुन तिवारी" का मानना है कि किसी भी परिवार एवं समाज को चिरस्थाई प्रगतशील एवं उन्नतशील बनाने के लिए बनाने के लिए संस्कारों का महत्वपूर्ण योगदान होता है परंतु आज हम अपने ही बच्चों को संस्कारित नहीं कर पा रहे हैं | इसका कारण यह है कि स्वयं हमने भी संस्कारों से मुंह मोड़ लिया है | जब संस्कार स्वयं हम मे नहीं बचे हैं तो हम अपने बच्चों को संस्कारी कैसे बना सकते हैं | एकल परिवारों को बढ़ावा देने में इन संस्कारों का ना होना भी एक महत्वपूर्ण कारण कहा जा सकता है क्योंकि कोई भी परिवार एवं समाज तभी श्रेष्ठ आचरण का पालन कर सकता है जब उनमें संस्कार आरोपित किए गए हो | संस्कार एवं आचार ही सर्वश्रेष्ठ धर्म कहे गये हैं | संस्कार अर्थात आचार से विहीन मनुष्य पवित्रात्मा भी हो तो उसका इहलोक एवं परलोक दोनों ही नष्ट हो जाता है इसलिए मनुष्य में संस्कार का होना परम आवश्यक बताया गया है |*
*एक मनुष्य में मानवीय संस्कार एवं सनातन संस्कारों का होना उसी प्रकार आवश्यक है जिस प्रकार जीवित रहने के लिए प्राणवायु | बिना प्राणवायु के मनुष्य एक क्षण भी जीवित नहीं रह सकता है उसी प्रकार बिना संस्कारों के मनुष्य का जीवन सुव्यवस्थित नहीं हो सकता |*